Sunday, August 23, 2015

परमात्म नीति – (33) - धर्म तो नितांत व्यक्तिगत निधि है न? तब उसकी मार्केटिंग क्यों?

इसी आलेख से –
आत्मशान्ति और आत्मकल्याण का उपाय मात्र आत्मनिरीक्षण है अन्य कुछ नहीं.
तू जिस नाम का ढिंढोरा पीटता है, जिस देह का फोटो छपाता है, वह (सल्लेखनारत व्यक्ति) तो उस नाम और देह को छोड़कर ही जारहा है, यह सारा प्रदर्शन उसके लिए तो हो नहीं सकता है, इस अवसर पर उसे तो इस सबकी आवश्यक्ता है नहीं.
कहीं यह सब हम परिजनों की प्रसिद्धी के लिए तो नहीं ?
कभी-कभी हम स्वयं ही अपने स्वयं के छुपे हुए अभिप्राय (hidden intentions) को ही नहीं पहिचान पाते हें.

- परमात्म नीति – (33)


 - धर्म तो नितांत व्यक्तिगत निधि है न? तब 

उसकी मार्केटिंग क्यों?








यह अवसर अपनी असहमति और विरोध प्रदर्शन का तो है ही, आत्मनिरीक्षण का भी है.
इस अवसर का हम भरपूर उपयोग करें.
प्रात:काल हम सभी जुलूस में शामिल होकर अपनी अभूतपूर्व एकता का प्रभावशाली प्रदर्शन करें और दिन के शेष बचे समय का उपयोग आत्मनिरीक्षण में करें.
“cherity begins from home” हमारी सहायता कोई और (सरकार,क़ानून या समाज) जब करेगा, तब करेगा, पर हम स्वयं तो यह काम अभी प्रारम्भ करही सकते हें न!
हमारा काम, हमारे हित का उपक्रम यदि हमही न करेंगे तो किसी अन्य से क्या आशा कर सकते हें हम?
वस्तुत: तो श्रृंगार स्वयं अपने लिए और अपने जीवनसाथी के लिए किया जाता है, जो अन्यों के लिए सजे-संवरे उसे तो कुछ और ही कहा/समझा जाता है.
कहीं तू भी प्रदर्शन के लिए ही तो त्याग/तपस्या नहीं कर रहा है?
यदि ऐसा है तो ज़रा विचार कर कि तू किस श्रेणी में आता है? ज़रा परख तो कर, कहीं ऐसा तो नहीं है न कि पीतल के ऊपर सोने का पानी चढ़ाहुआ हो!
जो वैभव सम्पन्न होते हें वे ठोस सोने की आभूषण पहिनकर आत्ममुग्ध होते हें और मात्र झूठे वैभव प्रदर्शन की चाहत रखने वाले दरिद्री पीतल पर सोने का पानी चढ़ाकर अपने वैभवशाली होने के झूंठे प्रदर्शन का प्रयास (अपनी द्ररिद्रता का प्रदर्शन) करते हें
हम यदि रत्नव्यवसायी हें तो क्या स्वयं के उपयोग/उपभोग के आभूषण भी बेच डालते हें? कोई अपने हाथकी रोटी (स्वयं का भोजन) तो नहीं बेचखाता है न?
तब धर्म में यह सब क्यों?
धर्म तो नितांत व्यक्तिगत निधि है न? उसमें तो परिजन भी भागीदार नहीं हें न? तब उसकी मार्केटिंग क्यों?
सल्लेखनाधारी के लिए तो प्रदर्शन और प्रचार के मायने ही क्या हें?
तू जिस नाम का ढिंढोरा पीटता है, जिस देह का फोटो छपाता है, वह (सल्लेखनारत व्यक्ति) तो उस नाम और देह को छोड़कर ही जारहा है, यह सारा प्रदर्शन उसके लिए तो हो नहीं सकता है, इस अवसर पर उसे तो इस सबकी आवश्यक्ता है नहीं.
कहीं यह सब हम परिजनों की प्रसिद्धी के लिए तो नहीं ?
कभी-कभी हम स्वयं ही अपने स्वयं के छुपे हुए अभिप्राय (hidden intentions) को ही नहीं पहिचान पाते हें.

आत्मशान्ति और आत्मकल्याण का उपाय मात्र आत्मनिरीक्षण है अन्य कुछ नहीं.

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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