Saturday, August 29, 2015

- परमात्म नीति – (35) - - क़ानून की नजर में मरने या जीने की “इक्षा” अपरिभाषित है, इक्षाएं कानून की नजर से परे हें, इक्षाओं पर क़ानून का कोई नियंत्रण नहीं है.

Newyork, USA से एक प्रश्न आया है किif Sallekhna ais sucide then what is living will?” (“सल्लेखना यदि आत्महत्या है तो जीने की इक्षा क्या है?”)

मेरा जबाब –

इसी आलेख से -
"धर्म तो जीनेकी इक्षा और मरने की इक्षा, दोनों को ही एक ही सामान अधर्म मानता है. धर्म तो इक्षा मात्र को ही पाप मानता है.
इक्षा स्वयं दुखरूप है और दुःख का कारण है. इक्षा पाप है और पापबंध (कर्मबंध) का कारण है.
इक्षा का निरोध तप है (तत्वार्थसूत्र- “इक्षानिरोधश:तप:”) और तप महान धर्म है.सल्लेखना न तो जीबन के प्रति मोह का नाम है और न ही म्रत्यु की आकांक्षा का, वह दोनों ही इक्षाओं के अभाव का नाम है, इसीलिये वह तप है, धर्म है.

समाज की नजर में म्रत्यु की इक्षा “अधम” (नीच वृत्ति) है और जीने की इक्षा जिजीबिशा है, सकारात्मक रवैया (positive attitude) है, इक्षा शक्ति है. समाज की नजर में यह एक सद्गुण है.

क़ानून की नजर में मरने या जीने की “इक्षा” अपरिभाषित है, इक्षाएं कानून की नजर से परे हें, इक्षाओं पर क़ानून का कोई नियंत्रण नहीं है."

- परमात्म नीति – (35)


-  क़ानून की नजर में मरने या जीने की “इक्षा” अपरिभाषित है, इक्षाएं कानून की नजर से परे हें, इक्षाओं पर क़ानून का कोई नियंत्रण नहीं है.






V/S








प्रश्न धर्म या समाज से नहीं है, प्रश्न मुझसे भी नहीं है, प्रश्न है क़ानून से, क्योंकि  न्यायालय ने (क़ानून ने) सल्लेखना को आत्महत्या करार दिया है –
धर्म तो जीनेकी इक्षा और मरने की इक्षा, दोनों को ही एक ही सामान अधर्म मानता है. धर्म तो इक्षा मात्र को ही पाप मानता है.
क्यों ?
क्योंकि इक्षा स्वयं दुखरूप है और दुःख का कारण है. इक्षा पाप है और पापबंध (कर्मबंध) का कारण है.
इक्षा का निरोध तप है (तत्वार्थसूत्र- “इक्षानिरोधस्तप:”) और तप महान धर्म है
सल्लेखना न तो जीबन के प्रति मोह का नाम है और न ही म्रत्यु की आकांक्षा का, वह दोनों ही इक्षाओं के अभाव का नाम है, इसीलिये वह तप है, धर्म है.

समाज की नजर में म्रत्यु की इक्षा “अधम” (नीच वृत्ति) है और जीने की इक्षा जिजीबिशा  है, सकारात्मक रवैया (positive attitude) है, इक्षा शक्ति है. समाज की नजर में यह एक सद्गुण है.

क़ानून की नजर में मरने या जीने की “इक्षा” अपरिभाषित है, इक्षाएं कानून की नजर से परे हें, इक्षाओं पर क़ानून का कोई नियंत्रण नहीं है.

हाँ! भारतीय क़ानून की नजर में आज सल्लेखना आत्महत्या है और जीने की इक्षा अपरिभाषित.

कानून जीवनदर्शन नहीं है कि उसमें हर बात की व्याख्या हो, क़ानून तो दंडसंहिता है.

क़ानून मानवनिर्मित होता है इसलिए न तो सम्पूर्ण होता है और न ही अपरिवर्तनीय. यह आधाअधूरा भी है और परिवर्तनशील भी. क़ानून कल कुछ और था, आज कुछ और है और कल कुछ और हो सकता है.

क़ानून की नजर में कलतक जो अपराध था आज वह देशभक्ति है और कल फिर वह देशद्रोह (अपराध) कहला सकता है. 
उदाहरण के लिए-
अंग्रजों के शासनकाल में, भारतीय जनता के हितों का विचार, बातें या कार्य करना, अंगरेजी शासन की खिलाफत करना, असहयोग करना आदि सब गतिबिधियाँ अंगरेजी शासन की नजर में देशद्रोह था, भयंकर अपराध था, आज आजाद भारत में वही सब (तत्कालीन अग्रेजी सरकार के विरुद्ध किये गए वही सब कार्य) देशभक्ति की श्रेणी में आते है व अभिनंदनीय हें पर अब यदि वही सब काम आज की सरकार के विरुद्ध किए जाएँ तो देशद्रोह कहलायेंगे.

मैं नहीं जानता कि यह दोगलापन (illegitimacy) नहीं तो और क्या है?

धर्म शाश्वत है, धर्म एक ही रहता है, धर्म बदलता नहीं क्योंकि धर्म वस्तु का स्वरूप है (वत्थुसहावोधम्मो) और वस्तु का स्वभाव कभी बदलता नहीं.

क़ानून परिवर्तनशील है, क़ानून तत्कालीन शासन की सुविधा-असुविधा के अनुरूप बनाया और बदला जाता है.
बदलेगा वही जो बदल सकता है, बदलता है. जो शाश्वत है वह सत्य है वह बदलता नहीं, वह बदला नहीं जा सकता है, वह नहीं बदलेगा.

यदि वर्तमान क़ानून की नजर में सल्लेखना “आत्महत्या” है, अपराध है तो क़ानून को बदलना होगा, क़ानून बदलेगा.
सल्लेखना महान तप है, धर्म है यह सदा धर्म ही रहेगा.
“यतोधर्मस्ततोजय:”, धर्म की विजय होगी.

तथास्तु! 

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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