Wednesday, September 23, 2015

उत्तम तप धर्म

धर्म के दश लक्षणों में सातबां-

उत्तम तप धर्म  -

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

इसी आलेख से -

"अहो ! कैसी विचित्रता है ? 
कुछ करना नहीं है, अकर्तव्य का त्याग करना है. 
वस्तु का नहीं ग्रहण का त्याग करना है 
अनादिकाल से आत्मा ने जगत के परपदार्थों के ग्रहण का राग किया है, पर का ग्रहण तो होता ही नहीं है, होही नहीं सकता है.
जब ग्रहण हुआ ही नहीं तो त्याग किसका करें?
मात्र ग्रहण के राग का त्याग करना है, यही उत्तम तप नामक धर्म है."





                                                                उत्तम तप धर्म 

त्यागना  परवस्तु  का  राग , बस   यह   तप   कहा
ग्रहण तो किया कब था, सो कुछ नहीं करने को रहा 
त्याग करना  लालसा का , वा  आतमा  में  रमणता 
प्रतपन-विजयन स्वरूप में,जिनधर्म  में ये तप कहा


बिन सम्यक  तपाना देह को, आत्मा का  तप  नहीं
परिणमन तन का  देह में  है, पर देह तो  मेरी  नहीं 
सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान पूर्वक , चारित्र ही है तप अहो 
चारित्र गुण है आतमा का, क्या देह का  इसमें कहो 

पदों का अर्थ -

आत्मा ने आनादिकाल से कभी परवस्तु का ग्रहण तो किया ही नहीं है, सिर्फ ग्रहण का राग करता है, उसी राग के त्याग का नाम तप है.
परके ग्रहण की इक्षा के त्यागपूर्वक आत्मा में लीनता अर्थात् निजस्वरूप में प्रतपन व विजयन ही तप है.
उत्तम तप आत्मा का धर्म है जोकि सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान पूर्वक ही होता है क्योंकि सम्यकचारित्र आत्मा का गुण है देह का नहीं. 


अहो ! कैसी विचित्रता है ? 
कुछ करना नहीं है, अकर्तव्य का त्याग करना है. 
वस्तु का नहीं ग्रहण का त्याग करना है 
अनादिकाल से आत्मा ने जगत के परपदार्थों के ग्रहण का राग किया है, पर का ग्रहण तो होता ही नहीं है, होही नहीं सकता है.
जब ग्रहण हुआ ही नहीं तो त्याग किसका करें?
मात्र ग्रहण के राग का त्याग करना है, यही उत्तम तप नामक धर्म है.

अन्य सभी धर्मों के ही सामान उत्तमत्याग धर्म भी सम्यग्दर्शनपूर्वक ही होता है क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना परपदार्थों से एकत्व-ममत्व बुद्धी छूटती ही नहीं है.

तप के दो प्रकार हें- 

- बाह्य तप 
  एवं 
- अन्तरंग तप  

बाह्य तप छह प्रकार के होते हें -

- अनशन 
- अवमौदर्य
- वृत्तिपरिसंख्यान 
- रसपरित्याग 
- विविक्तश्य्यासन 
   एवं 
- कायक्लेश 

अन्तरंग तप के भी छह प्रकार हें -

- प्रायश्चित 
- विनय
- वैयाव्रत 
- स्वाध्याय 
- व्युत्सर्ग 
   एवं 
- ध्यान 


  




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