Thursday, October 8, 2015

परमात्म नीति - (56) - महान लोग धैर्यवान होते हें

कल आपने पढ़ा -

"
महान लोगों की द्रढ़ता और संकल्प विनम्र होते हें "
अब आगे पढ़िए -

परमात्म नीति - (56)


by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 



महान लोग धैर्यवान होते हें - 

इसी आलेख से -

- "दुनियाँ के सभी कार्य एक निश्चित समय और क्रम में ही सम्पन्न होते हें, उक्त समय में कोई कटौती संभव नहीं है. 
वे लोग जिनमें धैर्य का अभाव होता है वे जल्दीबाजी में अपने काम बिगाड़ बैठते हें. वे महान उपलब्धियां प्राप्त नहीं कर सकते हें."

- "महान लोग मानते हें कि कुछ समय के लिए अपना धैर्य खो देने पर जीवन भर पश्चाताप की नौबत आ सकती है."










दुनियाँ के सभी कार्य एक निश्चित समय और क्रम में ही सम्पन्न होते हें, उक्त समय में कोई कटौती संभव नहीं है. 
वे लोग जिनमें धैर्य का अभाव होता है वे जल्दीबाजी में अपने काम बिगाड़ बैठते हें. वे महान उपलब्धियां प्राप्त नहीं कर सकते हें.
सामान्यजन के व्यक्तित्व में व्याप्त अधीरता उन्हें सफल नहीं होने देती है, उनमें इन्तजार करने का धैर्य नहीं होता है, वे अंकुरण से पूर्व ही जमीन खोदकर बीज में हो रहे विकास को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाते हें और इस प्रकार अंकुर नष्ट हो जाता है. महान लोग जानते हें कि एक निश्चित समय से पूर्व अंकुरण संभव ही नहीं.
महान लोग वस्तु के इस स्वरूप को समझते हें, स्वीकार करते हें एवं तदनुसार ही व्यवहार करते हें.
महानलोग इस तथ्य से परिचित होते हें कि अनुपयुक्त समय पर कोई काम कितना कठिन होता है और उपयुक्त समय आने पर वही काम कितना सरल हो जाता है.
किसी प्रयोजन की सिद्धी के लिए सही समय का इन्तजार करना या कार्य की परिपक्वता अवधि तक धैर्य बनाए रखना भी कार्य सिद्धी के पुरुषार्थ का ही एक महत्वूर्ण हिस्सा है.
वे लोग जो सही समय का इन्तजार करने तक धैर्य बनाए रखने में दक्ष होते हें वे अन्य किसी भी प्रक्रिया में दक्षता हासिल कर सकते हें जो कार्य सिद्धी के लिए आवश्यक है.
महान लोग मानते हें कि कुछ समय के लिए अपना धैर्य खो देने पर जीवन भर पश्चाताप की नौबत आ सकती है.
सामान्य लोग या तो लम्बी अवधि देखकर प्रयत्न प्रारम्भ ही नहीं करते हें या बीच में ही अपने प्रयत्न छोड़ देते हें, इस प्रकार कार्यसिद्धी से बंचित रह जाते हें.







आगे पढ़िए -
"महान लोग मात्र उद्देश्यों के प्रति ही नहीं साधनों की पवित्रता के प्रति भी सजग होते हें"

कल 


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 


- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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