Sunday, October 11, 2015

परमात्म नीति - (59) - महानलोग साहसी होते हें

कल आपने पढ़ा -

"महान लोग सहिष्णु होते हें"

अब आगे पढ़िए -


परमात्म नीति - (59)


by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल




महानलोग साहसी होते हें – 


इसी आलेख से -

- "न तो अंधा साहस ही उचित है और न ही संभावित खतरों से डरकर चुप बैठ जाना ही. एक में सर्वनाश की संभवना व्याप्त है तो दुसरे में कूपमंडूकता की.
उपादेय तो दोनों ही नहीं हें.
तब आखिर किया क्या जाए?"

- "सामान्यजन के विपरीत वे (महानलोग) साहसी होते हें, वे यथासंभव संभावित खतरों का आकलन करके ऐसे खतरे उठा लेते हें जिनका सामना किया जा सकता है और जिनमें उनका सर्वनाश की ही संभावना न हो. इस प्रकार वे कभी खतरों से बचकर या कभी खतरों पर विजय प्राप्त करके अपने प्रयोजन की सिद्धी कर ही लेते हें."

- "मध्यममार्गी लोगों के लिए यही उचित है कि वे महान लोगों का अनुशरण करें."







अगर किसी ने भी साहस नहीं किया होता तो यह दुनिया आजतक भी अन्जानी ही होती.

पहिली बार जिस मार्ग पर चला जाए वह मार्ग अपरिचित ही होता है, वहां खतरा भी हो ही सकता है. 

यदि खतरे के भय से उस मार्ग पर जाया ही न जाए तो वह मंजिल अपरिचित रह जायेगी जहां वह मार्ग जाता है. 

यदि उस मार्ग पर लापरवाही से चला जाए तो सर्वनाश का भय है और चला ही न जाए तो उपलब्धिविहीनता का.

न तो अंधा साहस ही उचित है और न ही संभावित खतरों से डरकर चुप बैठ जाना ही. एक में सर्वनाश की संभवना व्याप्त है तो दुसरे में कूपमंडूकता की.

उपादेय तो दोनों ही नहीं हें.
तब आखिर किया क्या जाए? 

सामान्य लोग तो ऐसे कार्य करते ही नहीं जिनमें खतरा हो, महानलोग अपनेआपको खतरे में डालकर नष्ट तो नहीं होजाना चाहते हें पर वे कोई भी संभावित हितकारी मार्ग यूं ही छोड़ भी नहीं देते हें.


सामान्यजन के विपरीत वे (महानलोग) साहसी होते हें, वे यथासंभव संभावित खतरों का आकलन करके ऐसे खतरे उठा लेते हें जिनका सामना किया जा सकता है और जिनमें उनका सर्वनाश की ही संभावना न हो. इस प्रकार वे कभी खतरों से बचकर या कभी खतरों पर विजय प्राप्त करके अपने प्रयोजन की सिद्धी कर ही लेते हें.


साहस के अभाव में सामान्यजन खतरों से डरकर आगे बढ़ते ही नहीं हें तब लक्ष्य तक कैसे पहुँच सकते हें. 


मध्यममार्गी लोगों के लिए यही उचित है कि वे महान लोगों का अनुशरण करें.








आगे पढ़िए -


"महान लोग दुस्साहस नहीं करते हें "


कल 


 

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

1 comment:

  1. sahas ke bina kya koi marg chun payega .chun bhi le to kya samaj payega , aur kya us per chal payega
    vs/surat

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