Monday, October 12, 2015

परमात्म नीति - (60) - "महान लोग दुस्साहस नहीं करते हें "

कल आपने पढ़ा -

"महानलोग साहसी होते हें ""

अब आगे पढ़िए 
परमात्म नीति - (60)

by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल


महान लोग दुस्साहस नहीं करते हें -

इसी आलेख से -

-"महान लोग अपनी और अपने मिशन की दीर्घायु सुनिश्चित करते हुए इस प्रकार आगे बढ़ते हें जिसमें उनका अस्तित्व ही संकट में न पड जाए."


- "किसी कार्य की सफलता के लिए मात्र पर्याप्त शक्ति ही आवश्यक नहीं वरन एक सुनिश्चित काल तक उस शक्ति का प्रयोग भी आवश्यक है, इसलिए अपने अभियान को दीर्घजीवी बनाना भी आवश्यक होता है."







साहस एक गुण है और दुस्साहस दोष.


किसी विशष्ट उपलब्धि के लिए, किसी संभावित खतरे को द्रष्टिन्गत रखते हुए (keeping in mind) उसके निराकरण की सावधानी वर्तते हुए एक परिकलित ख़तरा (calculated risk) मोल लेना साहस कहलाता है और खतरा निश्चित जानकार भी अपनेआपको उसमें झोंक देना दुस्साहस.


यदि हम ही न रहे तो उपलब्धि कैसी, किसकी उपलब्धि?


महानलोग दुस्साहस नहीं करते हें.


अविवेकी सामान्यजन सामान्य से लाभ के लिए भी अपने आपको ऐसे खतरों में झोंक देते हें जिनमें सर्वनाश की संभावना हो, जैसेकि किसी की ह्त्या जैसे अपराध कर बैठना, जिसके दंड में म्रत्यु निश्चित है; और ऐसे ही अन्य अनेक. 

ऐसे लोगों की रक्षा भला कौन, कबतक कर सकता है. 

महान लोग अपनी और अपने मिशन की दीर्घायु सुनिश्चित करते हुए इस प्रकार आगे बढ़ते हें जिसमें उनका अस्तित्व ही संकट में न पड जाए. 


स्वाधीनता संग्राम में अन्य क्रांतिकारियों के विपरीत महात्मा गाँधी ने शासन का घोर विरोध और नीतिपूर्वक अवहेलना करते हुए भी अपने आपको ऐसे कृत्यों से बचाए रखा जो शासन की निगाह में प्राणघातक दण्ड का पात्र हो. 

इस प्रकार अपने जीवन की रक्षा करते हुए उन्होंने अपने आन्दोलन को दीर्घजीवी बनाया. उनके वे दीर्घकालीन प्रयास सफल हुए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पडा. 

किसी कार्य की सफलता के लिए मात्र पर्याप्त शक्ति ही आवश्यक नहीं वरन एक सुनिश्चित काल तक उस शक्ति का प्रयोग भी आवश्यक है, इसलिए अपने अभियान को दीर्घजीवी बनाना भी आवश्यक होता है.


आगे पढ़िए -


"महानलोग आवश्यक खतरे अवश्य मोल लेते हें "


कल 


 

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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