Thursday, October 15, 2015

परमात्म नीति - (63) - महानलोग अपनी गल्तियों से सीखते हें (जो गल्तियाँ करते नहीं वे परमात्मा के सामान हें और जो गल्तियों से सीखते नहीं वे पशु के समान)

कल आपने पढ़ा -

"
महानलोग गल्तियाँ होने के भय से ठहर नहीं जाते हें"

अब आगे पढ़िए 
परमात्म नीति - (63)

by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल

महानलोग अपनी गल्तियों से सीखते हें  -

इसी आलेख से -

- "वे लोग तो महानतम लोगों की श्रेणी में आते हें जो अन्यों की गल्तियों से ही सीख लेते हें."


- "पशु के विपरीत मनुष्य को यह सुविधा उपलब्ध है कि वह अन्यों के अनुभव से भी सीख सकता है. इसीलिए मनुष्यता महान है."

पशुओं को तो अपने अनुभव से ही सीखना पड़ता है, मात्र ठोकरें खाकर ही नहीं वल्कि जान की बाजी लगाकर.

- "जो गल्तियाँ करते नहीं वे परमात्मा के सामान हें और जो गल्तियों से सीखते नहीं वे पशु के समान."

- "आप कोई भी कदम उठाते हें आपको उसका लाभ मिलना ही चाहिए, या तो आप अपने लक्ष्य तक पहुंचें या यह सीखलें कि यह सच्चा मार्ग नहीं है."


- "सामान्य लोग समीक्षा को व्यर्थ की दिमागी कसरत और समय की बर्बादी मानते हें पर महान लोगों के लिए समीक्षा अन्य किसी भी अध्यवसाय (efforts) से अधिक महत्वपूर्ण हुआ करती है."


- "गल्ती करना गल्ती है, यह अपराध नहीं पर गल्ती दोहराना अपराध है गल्ती नहीं."







महानलोग गल्तियों से सीखते हें. 

कोई अपनी स्वयं की और कोई अन्यों की.
वे लोग तो महानतम लोगों की श्रेणी में आते हें जो अन्यों की गल्तियों से ही सीख लेते हें, इस प्रकार वे ठोकरें खाने से बच जाते हें.
पशु के विपरीत मनुष्य को यह सुविधा उपलब्ध है कि वह अन्यों के अनुभव से भी सीख सकता है. इसीलिए मनुष्यता महान है.
पशुओं को तो अपने अनुभव से ही सीखना पड़ता है, मात्र ठोकरें खाकर ही नहीं वल्कि जान की बाजी लगाकर.

जो गल्तियाँ करते नहीं वे परमात्मा के सामान हें और जो गल्तियों से सीखते नहीं वे पशु के समान.


आप कोई भी कदम उठाते हें आपको उसका लाभ मिलना ही चाहिए, या तो आप अपने लक्ष्य तक पहुंचें या यह सीखलें कि यह सच्चा मार्ग नहीं है.

यदि आप इतना भी सीख गए तो आपका श्रम निरर्थक नहीं गया.
महान लोग अपने श्रम को निरर्थक नहीं जाने देते.  

महान लोग गल्तियों से सीखकर गल्ती करके चुकाई गई कीमत बसूल कर लेते हें. 

इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने प्रत्येक कार्य की समीक्षा करें. सामान्य लोग समीक्षा को व्यर्थ की दिमागी कसरत और समय की बर्बादी मानते हें पर महान लोगों के लिए समीक्षा अन्य किसी भी अध्यवसाय (efforts) से अधिक महत्वपूर्ण हुआ करती है.

जो लोग गल्ती करने से डरकर कोई कदम ही नहीं उठाते वे सबसे बड़ी गल्ती करते हें.


गल्तियाँ तो होंगीं ही, यह तो असंभव ही है कि गल्तियाँ हों ही नहीं; तब तक, जब तक कि व्यक्ति अपने कार्य में सम्पूर्ण दक्ष और सर्वज्ञ ही न हो. 


सामन्य लोग गल्तियाँ दोहराते रहते हें, गल्तियों से सीखते नहीं. 

जो गल्तियों से सीखते नहीं वे जीवनभर ठोकरें खाते हें.

शिक्षा क्या है?

योग्य गुरु के संरक्षण में अपनी गल्तियाँ निकालना/सुधारना, ताकि हानि न हो और गल्तियाँ निकल जाएँ.
इस प्रकार हम गल्तियाँ करते करते ही गल्तियाँ नहीं करना सीख जाते हें.

जो लोग गुरु से नहीं सीखते हें उन्हें ठोकरें खाकर सीखना पड़ता है; और संभव है कि उन्हें फिर कभी गल्ती दोहराने का अवसर ही न मिले.


गल्ती करना गल्ती है, यह अपराध नहीं पर गल्ती दोहराना अपराध है गल्ती नहीं. इसी प्रकार गल्ती स्वीकार न करना भी बड़ा अपराध है क्योंकि तब भविष्य में गल्ती दोहराने की संभावना बनी ही रहती है.




आगे पढ़िए -


"महानलोग प्रतिबद्ध (commited) होते हें "


कल 


 

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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