Monday, April 22, 2013

महावीर का स्यादवाद , शायदवाद नहीं . उसमें संशय को स्थान नहीं , अनिर्णय की जगह नहीं .स्यादवाद का कथन परम सत्य का उदघाटन है .

महावीर द्वारा प्रतिपादित महान सिद्दांत "स्यादवाद"
(जिसे सही रूप में समझा ही नहीं गया )
महावीर जयंती पर विशेष -

महावीर का स्यादवाद , शायदवाद नहीं .
उसमें संशय को स्थान नहीं , अनिर्णय की जगह नहीं .

स्यादवाद का कथन परम सत्य का उदघाटन है .

मैंने टीवी पर एक संत को अपने प्रवचन में महावीर के स्यादवाद का मखौल करते देखा -
वे कह रहे थे कि " यह आम भी है और नीम भी है , यह महावीर का स्यादवाद है "

जाहिर है वे स्यादवाद को तो समझे ही नहीं पर क्या वे ऐसा मानते हें कि महावीर इतने नादान थे ?
क्या उनकी सामान्य समझ ( common sense ) नहीं कहती कि "नहीं ! इतना महान दार्शनिक इतना भोला नहीं हो सकता , इतनी स्थूल भूल नहीं कर सकता है , इसमें जरूर कोई रहस्य होना चाहिए " ?

स्यादवाद के मायने हें कि - एक व्यक्ति पुत्र भी है , भाई भी है और पिता भी है ,एक ही समय में , एक साथ .

आप कह सकते हें कि "ऐसा कैसे हो सकता है"

हो क्यों नहीं सकता ? होता है .
एक ही समय में वह अपने पिता का पुत्र है और पुत्र का पिता , उसी समय वह बहिन और भाई का भाई भी है , इसमें विरोध कहाँ है ?

जब यह न कहा (बतलाया) जाए कि किसका ? तब वह पुत्र भी है (किसी का ,) ,पिता भी है (किसी का).
पर जब किसी व्यक्ति विशेष के सन्दर्भ में बात की जाए तब कहा जाता है कि वह कमल का पिता "ही" है (पुत्र या भाई नहीं ) और ज्ञानचंद जी का पुत्र "ही" है , पिता या भाई या और कुछ नहीं .

इस प्रकार जब किसी अपेक्षा रहित बात की जाती है तब "भी" का प्रयोग किया जाता है , जैसे कि (किसी का )पिता "भी" है और (किसी का) पुत्र "भी" है .
पर जब अपेक्षा बतलाकर बात की जाती है तब "ही" का प्रयोग किया जाता है , जैसे कि कमल का पिता "ही" है और ज्ञानचंद का पुत्र ही है .
इस तरह वह पुत्र भी है और पिता भी है
इसमें विरोधाभास कहाँ ?

महावीर कहते हें कि " प्रत्येक वस्तु अनंत धर्मात्मक है और उसमें परस्पर विरोधी अनेक "गुण-धर्म" एक साथ विद्यमान हें , बिना किसी की अपेक्षा के वह एक साथ , एक ही समय में "नित्य" "भी" है और "अनित्य" "भी" है , "अस्तित्व" की अपेक्षा "नित्य","ही" है और "परिणमन" (पर्याय) की अपेक्षा "अनित्य" "ही" है .

जैसे सोने की अंगूठी नित्य भी है और अनित्य भी , उसमें सोना नित्य है और अंगूठी अनित्य , अंगूठी टूटकर हार बन जायेगी फिर भी सोना तो सोना ही रहेगा .
इसमें सोना द्रव्य है जो नित्य ही है और अंगूठी पर्याय है जो अनित्य ही है , इस प्रकार सोने की अंगूठे नित्य भी है और अनित्य भी है

इस प्रकार अनंत धर्मात्मक वस्तु के कथन की पद्धति ( समझाने की भाषा ) को "स्यादवाद" कहते हें .
इसमें विरोधाभास कहाँ है ?

इस स्यादवाद पद्धति के बिना अनंत धर्मात्मक वस्तु की सही सन्दर्भ में सही व्याख्या संभव ही कहाँ है , जो इन अपेक्षाओं ( सन्दर्भों ) को नहीं समझेगा वह या तो एकांत रूप से वस्तु को नित्य ही मान बैठेगा या अनित्य ही , जो कि गलत है।

इस प्रकार महावीर द्वारा प्रतिपादित कथन पद्धति "स्यादवाद" , सत्य के उदघाटन का महान अस्त्र (tool) है .
इसे खुले मन से समझने की आवश्यकता है .

जो भी व्यक्ति इस स्यादवाद पद्धति से अनेकान्तात्मक वस्तु स्वरूप को समझेगा उसका कल्याण होगा .

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