Wednesday, October 21, 2015

परमात्म नीति - (69) - महानलोग उदार तो होते हें पर अपव्ययी नहीं

महानलोग उदार तो होते हें पर अपव्ययी नहीं -
इसी आलेख से -

उदारता के बिना संचित धन अपनी उपयोगिता खो देता है और अपव्यय धन के महत्व को नष्ट कर देता है. 

कंजूस व्यक्ति का धन संकट में भी उसके काम नहीं आ पाता है तो अपव्यय कभी-कभी व्यक्ति को गंभीर संकट में भी धकेल देता है.

न तो कंजूसी का नाम मितव्ययता है और न ही अपव्ययता का नाम उदारता. 
दोनों ही आदतें दोष हें, प्रगति में बाधक हें. 

व्यावहारिक अत्यावश्यक आवश्यक्ताओं की पूर्ति हो जाने पर हमें धनार्जन में वक्त बिताना वक्त की बरबादी है.

विलासिता मात्र धन का ही अपव्यय नहीं करती है वरन समय का भी अपव्यय करती है. वह समय जो कल्याणकारी गतिविधियों में व्यतीत होना चाहिये, विलासिता में व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है.


परमात्म नीति - (69)

by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल










उदारता के बिना संचित धन अपनी उपयोगिता खो देता है और अपव्यय धन के महत्व को नष्ट कर देता है. 

कंजूस व्यक्ति का धन संकट में भी उसके काम नहीं आ पाता है तो अपव्यय कभी-कभी व्यक्ति को गंभीर संकट में भी धकेल देता है.
उक्त दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियाँ अविवेक की ही सूचक हें, अविवेक का ही प्रतिफल हें.
महानलोग विवेक से काम लेते हें इसलिये उक्त दोनों ही प्रवृत्तियों से मुक्त होते हें. वे उदार होते हें पर अपव्ययी नहीं.
न तो कंजूसी का नाम मितव्ययता है और न ही अपव्ययता का नाम उदारता. 
दोनों ही आदतें दोष हें, प्रगति में बाधक हें. 
महान लोग दोनों ही प्रवृत्तियों से ग्रसित नहीं होते हें, और वे एक संतुलित जीवन जीते हें.

धन जीवनयापन का साधन है, जीवन का उद्देश्य नहीं; इसलिये धनार्जन में मात्र सीमित समय ही व्यतीत करना ही उचित है और अपनी व्यावहारिक अत्यावश्यक आवश्यक्ताओं की पूर्ति हो जाने पर हमें धनार्जन में वक्त बिताना वक्त की बरबादी है.
स्वाभाविक है कि अपव्ययी व्यक्ति को अधिक धनार्जन करना होगा, उसे धनार्जन में अधिक समय व्यतीत करना होगा, जो कि न तो उचित है और न ही कल्याणकारी.

एक बात और है, जीवन की मूलभूत आवश्यक्ताओं में अधिक अपव्यय को अवकाश नहीं है. उनमें होने वाला व्यय तो लगभग सुपरिभाषित है. 

यदि कोई व्यक्ति अपव्यय करता है तो निश्चित ही वह अपनी मूलभूत आवश्यक्ताओं की सीमा का उलंघन करता है और कदाचित विलासिता की सीमा में प्रवेश करता है, जो कि कल्याणकारी नहीं होने से अनुचित ही है.

विलासिता मात्र धन का ही अपव्यय नहीं करती है वरन समय का भी अपव्यय करती है. वह समय जो कल्याणकारी गतिविधियों में व्यतीत होना चाहिये, विलासिता में व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है.

विलासिता मात्र अविवेकपूर्ण आचरण ही नहीं है वरन वह विवेक का हरण करने में भी निमित्त बनती है.

महान लोग इस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त होकर अपने आपको व्यर्थ ही संकट में नहीं डालते हें.

आगे पढ़िए -


"
महानलोग क्षमाशील होते हें पर भूलों को अनदेखा नहीं करते"

कल 


 

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

 



- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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