अपने ही दायरे में सिमटते जारहे हैं लोग
कोई बाहर निकल ही नहीं पाता है
यहां तो सिर्फ घोंसले दिखाई देते हैं
पंछी तो नजर ही नहीं आता है
पंछी या तो घोंसले में कैद हैं
या उड़कर जाचुके हैं
दूर कहीं
एक नया आसियाँ बसा चुके हैं
चिढ़ा रहे हैं सूरज को
या खुदको ही छल रहे हैं लोग
कुछ मोमबत्तियां जलाकर
हद से आगे बढ़ रहे हैं लोग
ये आज मुझको
कितने बौने नजर आरहे हैं लोग
फूंककर घर अपना
तमाशा दिखा रहे हैं लोग
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